STORYMIRROR

SARVESH KUMAR MARUT

Drama

3  

SARVESH KUMAR MARUT

Drama

बेचैन अंखियाँ

बेचैन अंखियाँ

1 min
194

छुपी हुई कोई बात मन में, 

बड़ी हलचलें मची हैं तन में। 

अंखियों में उफनाहट नीर खौला, 

कपाटों को खोल धीमे से बहता चला। 

आँसू भी बोल गए साथ था तेरा यहीं तक,

कोई ही शायद बचता वरना सब जाते टपक।

मोतिन से चमकता वह; पर दिखता अंगार निरा, 

झरने से बहते हुए कपोलों और हृदय पर जा गिरा। 

अंखियाँ भी अब अंधी हुई और हृदय पर आहूति,

सपक-सपक सी सिसकियों से बढ़ी हृदय गति।

अंखियाँ अब मिचतीं चलीं और दंतियाँ भी कढ़ी।।1


सखियाँ अब हम नाहिं बचहिं,

जा सुन लेओ बात हमरी।

नब्ज़ हमरी पड़ रही स्थिल,

श्वासें रहि हैं लड़खत हैं परी।

हम हुईं परलोक की वासी,

अब नाहिं बचा है कछु ही सखि।

मेरे तऊ गोपाल मुरररिया वारे,

बिनु उनके फिरें हम मतवारे।।2


सखियाँ मैं हुई अब फ़ूटी बदरी,

व्याकुल हैं हाँ हम बिनकी घटकी।

नाहिं घट ही रहे न रही फ़ूटी मटकी,

हम तो सूख-सूख सुखियाई गईं।

क्षीर गए तौ गए-तौ गए,

अब हम ही बचे बिनु जल मछरी।

मछरी कौ बकु तहुँ ले जावै,

पर देख हमरी काया, बकु न खावै।।3


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama