आठवा दिन...
आठवा दिन...
प्रिय डायरी,
आठवाँ दिन आठवा दिन
आज दिन भर तो रोज की तरह ही
काम काज चलते रहे पर
हाँ ! कुछ चीजों को लेकर
कुछ समझ में नहीं आता
कि ये दुनिया आखिर है कैसी
जिसे मैने एक हाथ आगे बडाने की कोशिश की
क्या उनहे मेरी बिलकुल
परवाह नहीं या चिंता नहीं
असल में देखा जाए तो
उन्हीं लोगों को किसी और की
परवाह ज्यादा होती है हम ही
खुद को तकलीफ होती है
पता नहीं हम हमारे दिल को
क्या समझाते रहते हैं
इसके अलावा आज कोरोना
की बढ़ती लोगों की संख्या
काफी चिता जनक हो रही है
कभी कभी समझ में नहीं आता
आगे क्या होगा
अब तो सब कुछ भगवान पर है।