हाल अजीब था
हाल अजीब था
जुदा करके मुझे फिर बुलाना अजीब था
फरेब करके फिर वफ़ा निभाना अजीब था
रेह गए ऊंची उड़ान के ख्वाब अधूरे
हौसला तोड़ के हौसला बढ़ाना अजीब था
करता था अपनी शर्तों पर जीने की बातें
यक़ीनन जैसा भी था वह इंसान अजीब था
हो अपनों से दुश्मनी ग़ैर पर मेहरबान
क्या कहें की अपना ही घराना अजीब था
नाराज़ होते थे दिल में कदुरत ना थी
बचपन का हमारे वह ज़माना अजीब था।