मुहब्बत की क़ैद
मुहब्बत की क़ैद
बहर
1222 1222 1222 1222
ये कैद-ए-इश्क़ से 'जाना' तुझे आज़ाद करते है,
मुकम्मल आज तेरी और इक मुराद करते है।
भुला देना मुझे बेशक़ जो चाहो भूलना पर हम,
कहेंगे ना कभी तुम्हें कि कितना याद करते है।
खता कर बैठते है हम मुहब्बत में तिरी यूँ ही,
कि अक्सर उस ख़ुदा का ज़िक्र तेरे बाद करते है।
किया सजदा मैंने महबूब का, की है इबादत भी,
वो ठुकरा के मिरा ये इश्क़ कहीं ईजाद करते है।
कि वो बरबाद करके ज़ोया को, मासूम बन बैठे
दिखाने को किसी की ज़िन्दगी आबाद करते है।
March 5 / Poem10

