"बूढ़ा बाबा बरगद पेड़"
"बूढ़ा बाबा बरगद पेड़"
वो पुराना सा बूढ़ा बाबा बरगद का पेड़।
जिससे जुड़े थे, बहुत सारे जीवों के हेत।।
कई चिड़ियाओं ओर कीटों का घर रेत।
लोगों ने चढ़ाया दिया, अपनी स्वार्थ भेंट।।
आखिर क्या कसूर था, इस बरगद पेड़।
स्वार्थियों ने चलाई, कुल्हाड़ी इसके पेट।।
आज परहित करना है, सबसे बड़ा गुनाह।
दूजो की भलाई में कट गया, बेचारा पेड़।।
खास कानून की मजबूत होती कोई बेंत।
हमारे स्वार्थ की बलि न चढ़ता, बेचारा पेड़।।
वक्त रहते सब इंसानों तुम सुधर भी जाओ,
न तो ईश्वर निकाल देगा, तुम्हारी सारी टेट।।
गर न होंगे, साखी भू पर पेड़, पौधे ओर खेत।
भूख से मर जाओगे ओर रोयेगा तुम्हारा पेट।।
सांस लेने की ऑक्सीजन की होगी कमी।
फिर तुम्हारी आँखों मे होगा इतनी नमी।।
आंखें भरी, होगी आंसुओं की न होगी जमीं।
धरती पर पेड़ों बगैर न होगा जीवन कभी।।
यही वजह, हमारे पुरखों ने लगाये बहुत पेड़।
इन्हें धर्म से जोड़ा, ताकि हम लगाए बहुत पेड़।।
हम होशियार इन्हें कह रहे, अंधविश्वास की रेत।
वो थे, दूरदर्शी हम न समझे, उनका शिक्षा तेज।।
उन्होंने सिखाया जीते जी, पांच पेड़ लगाओ।
मृत्यु बाद ईश्वर देगा निःशुल्क लकड़ी सेज।।
यही कहते हमारी पुराण, उपनिषद, चारों वेद।
पेड़ लगाओ, खुशियों से भरा, होगा जीवन पेज।।
प्रकृति की गोद ओर मां दोनो ऐसी जगह वैध।
जहां मिट जाता जीवन का सकल दुःख, क्लेश।।
आओ पेड़ बचाये, ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाये।
धरा पर स्वर्ग से भी सुंदर होगा, हर जीवन खेत।।