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Goldi Mishra

Drama Others

4  

Goldi Mishra

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धुन कोई

धुन कोई

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गंगा के घाट पर मैंने उस धुन को देखा,

आहिस्ता बहते उस पावन जल में मैंने संगीत देखा।।

सुनकर उस मृदंग की थाप,

मैं झूमी सारी रात,

दूर कही से बांसुरी की धुन दी सुनाई,

उसे सुनकर मैंने अपनी सुध बिसराई।।

गंगा के घाट पर मैंने उस धुन को देखा,

आहिस्ता बहते उस पावन जल में मैंने संगीत देखा।।


कोई राग छेड़ा था एक बैरागी ने,

एक शंखनाद किया किसी धनुर्धारी ने,

सारंगी लिए निकला कोई मुसाफिर,

किसी पुराने गीत को गुनगुनाता चल रहा था वो मुसाफिर।।

गंगा के घाट पर मैंने उस धुन को देखा,

आहिस्ता बहते उस पावन जल में मैंने संगीत देखा।।

उस शाम चाय की प्याली थामे मैंने एक गीत सुना,

व्याकुल मन उस धुन को सुनकर थिरक उठा,

सात सुरों की सरगम उस रोज़ दिल ने गुनगुनाई,

उस अलबेले संगीत ने मन को एक राहत पहुंचाई।।

गंगा के घाट पर मैंने उस धुन को देखा,

आहिस्ता बहते उस पावन जल में मैंने संगीत देखा।।


हाथों में ढपली लिए मोहल्ले के बच्चे कोई लोक गीत गा रहे थे,

बन मस्तमौला अपनी ही धुन में खोए हुए थे,

वीणा की तान में आज किसी के आने की आहट मिली है,

बाहर झर झर बरसते इस सावन में आज एक साज़ मिली है।।



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