विदा
विदा
चलो ना फिर से शुरूआत करते हैं
ये कहानी दोबारा से लिखते हैं
थोड़ी इतराई सी तुम आओ
थोड़ा बेखबर सा मैं गुज़रता हूँ..
नज़रें मिला लेना और एक दफा
आसान न होगा माना, मगर फिर भी ...
आसान न होगा मगर फिर भी,
थोड़ा मुस्कुरा मैं भी दूंगा
दबी आवाज़ में
इधर उधर की,
इधर-उधर देख कर
कुछ बातें ही कर लेंगे..
भीड़ रहती हैं रास्ते में
खो न जाए कहीं
हथेली न सही, कुछ दूर तक
उंगलियां थाम के चल लेंगे ..
कुछ दूर तक, कुछ दिनों तक
ऐसे ही सब दिन
दोहरा के देखेंगे..
शायद कहीं से
इससे बेहतर सबब मिल जाए
अलग होने का ...