चलो लबों पे हंसी उगाएं
चलो लबों पे हंसी उगाएं
चलो लबों पे हंसी उगाएं
गुज़र रहे हैं जो लम्हे उनसे
खुशी के बीजों को हम निकाले
और गर पङती हैं आँखे नम तो
उन्हे आँसुओ से सींच डालें
माना हो कैद वक़्त के दायरों में
मुलाज़िमत के इन बंधनों में
है छीनी मगर ये मुसकान किसने
जो इतने संजीदा हो गये हो
किस बोझ से रंजीदा हो गये हो
ये चोगा नकली है फेंक डालो
सोया हुआ बचपना जगालो
चलो मोहल्ले की सांझा छत पे
वो बिखरे हुए मांझो की फलक पे
कोई पुरानी पतंग निकाले
और उससे बाकियों को काट डाले
गलियों में दौङे फिर लङ झगङ के
कटी पतंगो को लूट लाए
बेपरवाह बेबाक कहकहों से
जो छूटी थीं यारियां निभाए
चलो लबों पे हंसी उगाएं ।
