यादे बचपन की।
यादे बचपन की।
काफिरो सी जिंदगी, अब मजबूरी सी हो गयी है।
जिंदगी में जी-हुजूरी, अब जरूरी सी हो गयी है।।
सुकूँ के पल खोये-सोये, जैसे बरसों लगने लगे है ।
लगता है घर और अपनों में, अब दूरी सी हो गयी है।।
जाने-अनजाने में बचपन की याद आ ही जाती है।
दोस्तों के साथ मटरगस्ती, दिमाग मे छा ही जाती है।
भूख दिन में कितना लगती थी,इसका इल्म न था।
बात वो बचपन की अक्सर, मुझे रुला ही जाती है।।
बचपन की रंगीं निशानियां कुछ भूरी सी हो गयी है।
जिंदगी बस चाट, बतासा, और मंचूरी सी हो गयी है।।
