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NARENDRA SHARMA

Drama

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NARENDRA SHARMA

Drama

यादे बचपन की।

यादे बचपन की।

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काफिरो सी जिंदगी, अब मजबूरी सी हो गयी है।

जिंदगी में जी-हुजूरी, अब जरूरी सी हो गयी है।।


 सुकूँ के पल खोये-सोये, जैसे बरसों लगने लगे है ।

लगता है घर और अपनों में, अब दूरी सी हो गयी है।।


जाने-अनजाने में बचपन की याद आ ही जाती है।

दोस्तों के साथ मटरगस्ती, दिमाग मे छा ही जाती है।


 भूख दिन में कितना लगती थी,इसका इल्म न था।

बात वो बचपन की अक्सर, मुझे रुला ही जाती है।। 


बचपन की रंगीं निशानियां कुछ भूरी सी हो गयी है।

जिंदगी बस चाट, बतासा, और मंचूरी सी हो गयी है।।


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