वो कोई पीर रहा होगा...
वो कोई पीर रहा होगा...


ग़ुलामी के साये में जो आज़ाद हिन्द की बातें करता था...
किसी दौर में खून के बदले जो आज़ादी का सौदा करता था...
बचपन में ही स्वराज के लिये अपनों से दूर हुआ होगा...
बस अपनी सोच के गुनाह पर जो मुद्दतों जेल गया होगा...
वो कोई पीर रहा होगा....
क्या बरमा...अंडमान..
क्या जर्मनी...जापान...
शायद ये जहाँ था उसके लिए छोटा...
किसी दौर ने गोरों पर बंगाली जादू चढ़ते देखा होगा..
फरिश्तों ने जिसका सजदा किया होगा....
वो कोई पीर रहा होगा....
अंदर सरपरस्त साधू ....बाहर पठान का चोगा...
खुद की कैद को उसने अपनी रज़ा पर छोड़ा था..
अंग्रेजों की आँखों का धोखा....
कहाँ ऐसा हिन्द का हमनवां होगा..
वो कोई पीर रहा होगा...
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जहान को कुछ बताने..रविन्द्र सी ग़ज़ल सुनाने...
या शायद धूप-छाँव का हिसाब करने ज़मी पर यूँ ही आ गया..
न उसके आने का हिसाब थ ..और न जाने का...
और कहने वाले कहते है वो 1945 के आसमां में फ़ना हो गया...
काश रूस पर सियासी बर्फ़ न जमा होती...
अगर ये बात सच होती तो अनीता-एमिली की आँखों ने दगा दिया होगा...
गाँधी से जीतकर भी जिसने महात्मा को जिया होगा...
वो कोई पीर रहा होगा...
वाकिफ जिंदगी में जो कभी रुक न सका....
गुमनामी में दरिया पार किया होगा...
दूर कहीं या पास यहीं कितनी मायूसी में मुल्क को जीते-मरते देखा होगा...
आज़ाद होकर अपने ज़हन से दूर हुआ होगा...
वो कोई पीर रहा होगा...
....वो कोई पीर रहा होगा...