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मोहित शर्मा ज़हन

Abstract

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मोहित शर्मा ज़हन

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आप दोनों सिर्फ़ मेरे !

आप दोनों सिर्फ़ मेरे !

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कुछ मैंने समझा...कुछ तुमने माना,

नई राह पर दामन थामा।

कुछ मैंने जोड़ा...कुछ तुमने संजोया,

मिलकर हमने 'घर' बनाया।

दोनों की जीत...दोनों की हार,

थोड़ी तकरार...ढेर सा प्यार।


मेरी नींद के लिए अपनी नींद बेचना,

दफ्तर से घर आने की राह देखना।

माथे की शिकन में दबी बातें पढ़ना,

करवटों के बीच में थपथपा कर देखना।


साथ में इतनी खुशियां लाई हो,

एक घर छोड़ कर...

मेरा घर पूरा करने आई हो।

पगडंडियों से रास्ता सड़क पर मुड़ गया है...

सफर में एक नन्हा मुसाफिर और जुड़ गया है।


चाहो तो अब पूरी ज़िंदगी

इन दो सालों की ही बातें दोहराती रहो

लगता है यह सफर चलता रहे

कभी पूरा न हो !


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