ज़रूरी था...
ज़रूरी था...


पिछले हफ़्ते मैं और मेरे माता-पिता कोरोना पॉजिटिव हो गए। इस समय मैं अपने पैतृक घर पर उनके साथ हूँ। मेरी पत्नी और पुत्र दूसरे घर में सुरक्षित हैं। 19 अप्रैल को हमारी शादी की तीसरी सालगिरह थी, लेकिन इस स्थिति में उनसे मिलना संभव नहीं था। इस आपदा की घड़ी में, लोगों के इतने बड़े दुखों के बीच यह बात बांटना भी छोटा लग रहा है। बस यह ठीक है कि मेरा बाकी परिवार सुरक्षित है और मैं इस समय माता-पिता के साथ हूँ। मेघा को दिए कुछ उपहारों में हमारे फ़ोटो पर कलाकार Ajay Thapa की बनाई यह पेंटिंग सबसे ख़ास है...
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आगे कभी...पीछे मुड़कर इस साल को देखेंगे,
तुम इससे पूछ लेना..."क्या
यह साल ज़रूरी था ?"
मैं भी डांट दूंगा..."क्या यह हाल ज़रूरी था ?"
ज़िन्दगी के किसी शांत दौर में...फिर इस साल से बात करेंगे।
तब जब तुम मुस्कुरा रही होगी,
बैंक में पड़ी मोटी बचत का हिसाब लगा रही होगी,
बुढ़ापे की दवाई खा रही होगी।
तब जब मैं कहीं फ़ोन नंबर की जगह पिन कोड लिख रहा होऊंगा,
तुम मुझे किसी महीन बात का अंतर समझा रही होगी।
मैं छिप कर मीठा खा रहा होऊंगा,
तुम प्रभव से मेरी शिकायत लगा रही होगी।
उन बातों में कभी इस साल को भी शामिल कर लेंगे,
और मुस्कुराकर इससे कहेंगे,
शायद यह इम्तिहान ज़रूरी था।