क्यों फेंका कूडे पर..?
क्यों फेंका कूडे पर..?


मुझको साया दिखा....और उसके पीछे रौशनी,
पल मे यूँ गुम गया जैसे था ही वो नहीं,
छोडा मुझे अनजाना सा...बेगाना सा यहाँ,
खुद से मै पूछता मुझको जाना अब कहाँ?
ओ माँ...........
क्यों फेंका कूडे पर....मेरी माँ??
हमम..क्यों फेंका कूडे पर मेरी माँ???
कैसे कर लूँ मै इस बात का यकीन?
होश आया नहीं.... और मै बन गया यतीम.
क्या थी मजबूरी या मुझमे कुछ कमी,
आँचल के बदले क्यों मिली मुझे ज़मी?
आहट हो जब भी तो&n
bsp;लगता है यही,
देखे तू मुझको छुप के कहीं...
कबसे तुझको ढूँढता फिर रहा...
देख ना...तेरा बेटा मुंबई का बाप बन गया...
ओ माँ.....
क्यों फेंका कूडे पर....मेरी माँ...!!
हमम….क्यों फेंका कूडे पर मेरी माँ??
धुन्दला सा याद है अब तक साया वो तेरा,
आँचल मे क्यों ना दी पनाह?
इतना तो सोचा होता....
नन्ही सी जान और इतना बड़ा जहाँ....
बचपन तो गया...फिर भी वक़्त है थमा....
मुझे बता...ओ माँ....क्यों फेंका कूडे पर मेरी माँ?