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मोहित शर्मा ज़हन

Tragedy

4  

मोहित शर्मा ज़हन

Tragedy

दिल्ली बड़ी दूर है, किसान भाई !

दिल्ली बड़ी दूर है, किसान भाई !

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वह भागने की कोशिश करे कबसे,

कभी ज़माने से तो कभी खुद से

कोई उसे अकेला नहीं छोड़ता,

रोज़ वह मन को गिरवी रखअपना तन तोड़ता।


उसे अपने हक़ पर बड़ा शक,

जिसे कुचलने को रचते 'बड़े' लोग कई नाटक!

दुनिया की धूल में उसका तन थका,

वह रोना कबका भूल चुका।


सीमा से बाहर वाली दुनिया से अनजान,

कब पक कर तैयार होगा रे तेरा धान?

उम्मीदों के सहारे सच्चाई से मत हट,

देखो तोइंसानी शरीर का रोबोट भी करने लगा खट-पट!


अब तुझे भीड़ मिली या तू भीड़ को मिल गया,

देख तेरा एक चेहरा कितने चेहरों पर सिल गया।

यह आएगावह जाएगा,

तेरे खून से समाज सींचा गया हैआगे क्या बदल जाएगा?


तेरे ज़मीन के टुकड़े ने टेलीग्राम भेजा है,

इस साल अच्छी फसल का अंदेशा है।

देख जलते शहर में लगे पोस्टर कई,

खुश हो जाइनमें तेरी पहचान कहीं घुल गई।


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