अहमियत
अहमियत


नन्हे शौकत ने अपने पहले रमजान को माना,
कुरान शरीफ की अहमियत को जाना,
था वो नन्ही सी जान,
पर उसके रोजो मे साफ़ झलकता था उसका ईमान.
अब्बू-अम्मी की था वो जान,
अप्पी और भाई को करता था हरदम परेशान.
शौकत की फ़िक्र मे किसी को नींद ना आती,
सबका चाहे जो हो पर नन्हे की सहरी कभी ना छूट पाती
और तब तो मिलता सबको इफ्तार का अलग ही मज़ा,
जब शाम के वक़्त खुलता शौकत का रोज़ा.
अभी तो इसने ज़िन्दगी को शुरू भर किया,
फिर भी मज़हब को कई "बड़ो" से बेहतर समझ लिया.
एक रोज़ सब इंतज़ार मे थे की वो सब इफ्तार कर पायें,
जब अब्बू काम से घर लौटकर आये.
देर तक भी जब अब्बू की कोई खबर नहीं मिली,
आज शौकत भूखे पेट ही पढने चला गया तराबी.
अगले
दिन तक उनकी कोई खबर न मिलने पर हर कोई बेचैन दिख रहा था,
इस घर का ये रोज़ा भी लम्बा खींच रहा था.
कुछ रोज़ तक कुछ पता ना चलने पर मायूसी का मंज़र फैला रहा,
जिद्दी शौकत का रोज़ा भी लम्बा खींचता गया
इस नन्हे बंदे ने चुना अजब सा रास्ता,
खुदा को देने लगा खुदा का ही वास्ता.
जब इंतेहा की हद पार कर गया इंतज़ार,
दिया गया उनकी गुमशुदगी का इश्तेहार.
अखबारों को बताया गया शौकत के अब्बू का हुलिया और नाम,
साथ ही बताया गया उनके बारे मे पुख्ता खबर देने वाले को 20,047 रुपयों का इनाम.
"20,000 तो ठीक है, ये 47 रुपये अलग से क्यों जोड़ दिए ?"
"ये 47 रुपये बाकी 20,000 से ज्यादा अहम है...साहब,
जो शौकत ने अपने अब्बू के लिए अपनी गुल्लक तोड़ कर है दिए !"