आनंद सुख दुःख
आनंद सुख दुःख
दुःख उधार का है,आनन्द स्वयं का है।
आनन्दित कोई होना तो अकेले भी हो सकता;
दुखी होना चाहे तो दूसरे की जरूरत है।
कोई धोखा दे गया; किसी ने गाली दी
कोई तुम्हारे मन की अनुकूल न चला- सब
दुःख दूसरे से जुड़े है।
और आनन्द का दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है।
आनन्द स्वस्फूर्त है दुःख बाहर से आता है,
आनन्द भीतर से आता है तू ही तू।
