ये घर भी कुछ कहता है।
ये घर भी कुछ कहता है।
ज़रा ध्यान लगा के सुन लो सारे,
ज़र्रे ज़र्रे पे बने जो आशियाने,
कहीं पे हंसी, कहीं ठिठोली गूंजे,
हर सपना जहाँ सच होता है।
ये घर भी कुछ कहता है
नमी भरी रातें कभी, खुशियों की सौगातें,
रूठना मनाना कभी, तो कभी की जो बातें,
जहाँ भी की रौनक जो गुनगुनाता है।
ये घर भी कुछ कहता है
संघर्षों के हज़ारों पलों का जो साक्षी
गिरते, उठते, बढ़ते, मंज़िल तक का आदि
हर नयी मुस्कान का मोती पिरोता है
ये घर भी कुछ कहता है।।
