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हरीश कंडवाल "मनखी "

Abstract

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हरीश कंडवाल "मनखी "

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बुलावा

बुलावा

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आज ससुराल से साली का फोन आया

बड़े मधुर स्वर में ससुराल आने का बुलावा आया

साली ने कहा बहुत दिन से नहीं मुलाकात

आओ बैठकर करे जरा हंसी मज़ाक।।


अगले दिन हम साली को मिलने घर से निकल गये

दो चार चॉकलेट लेकर ससुराल पहुँच गए

ससुराल में सबको दुवा सलाम किया

सासू ने कहा दामाद जी आज कैसे आना हुआ। 


साली ने हमको प्यार से चाय पिलाई

जीजा जी आपसे बहुत दिन में आपसे मुलाकात हो पाई

सास ससुर जी टीवी चैनल देखने मे व्यस्त

उधर साली भी फ़ोन में सोशल मीडिया में मस्त।।


अब हर किसी के हाथ मे फोन था

ससुराल में दामाद आया है ये कोई नया नहीं था

रिश्ते वही थे बस अब विचार बदल गए

जीजा साली अब पहले जैसे नहीं रह गए।


अब रिश्तों में वो बात नहीं रही

पहले जैसे वो मुलाकात नहीं रही

अब तो बुलावा केवल औपचारिक हो गया

क्या करे लोग कहते जमाना अब बदल गया। 


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