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हरीश कंडवाल "मनखी "

Tragedy

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हरीश कंडवाल "मनखी "

Tragedy

देहरादून

देहरादून

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शांत आबोहवा का वातावरण

अब प्रदूषण में बदल गया है

हरे पेड़ो से लखदख वन नगर

अब कंक्रीट में बदल गया है।


नहरों की वो कल कल ध्वनि

गाड़ियों की हॉर्न में बदल गये है

एकड़ में बासमती और गन्ने केे खेत

 गज फुट बिस्वा में बिक गये हैं।


पल पल बदलने वाला मौसम

अब बरसना हीं भूल गया है

आम लीची चाय बागानों ने

अब महलो का रूप ले लिया है।


कौमी एकता की यह नगरी 

मंदिर मस्जिद में बदल गयी

बिंदाल ऋषिपर्णा की निर्मल धारा 

अब गंदे नालो में बदल गयी।


स्मार्ट सिटी तो बनी नही

भीड़ तंत्र में बदल गयी

सुकून और शांत घाटी

अपराधों की गढ़ बन गयी।


सेवानिवृत्त का आराम जीवन

अब हड़ताल में बदल गया

आम इंसान का यह देहरादून

सफेदपोशो का आरामगाह बन गया।


विधानसभा, सचिवालय, निदेशालय

राजधानी गैरसैण कि सौतन बन गई

पहाड़ खाली हो गये, यँहा बस्ती हो गई

अपने तो हुए गैर, गैरों की यँहा मस्ती हो गई।


परिवर्तन संसार का नियम है

यह तो बदलना स्वाभाविक है

प्रकृति क़ो असंतुलित करना

यह विकसित जीवन नहीं है।


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