पत्ता
पत्ता
घर में बैठे बुजुर्ग ने अपने
परिवार से बात करनी चाही
घर के सदस्यों ने उनकी बात पर
कभी ध्यान देने की कोशिश नहीं की।
बुजुर्ग को अनदेखा अनसुना करते हुए
सभी अव्यवस्थ होकर फ़ोन पर व्यस्त रहते
बुजुर्ग खुद से बात करता कभी कभी तो
सब चुप रहने की सलाह देते रहते।
कुछ दिनबाद बुजुर्ग पास के पार्क में जाता
वंहा एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाता
खुद से बात करके खुद को समझाता
पार्क में लगे पेड़ो को अपनी मन की कहता।
एक दिन पेड़ का एक पत्ता
बुजुर्ग की गोद में गिरा
बुजुर्ग ने उस पत्ते को
जैसे ही नीचे फेकना चाहा
उस पत्ते ने बुजुर्ग व्यक्ति से कहा,
रुक जाओ मेरी सुनो
रोज तुम हमसे बात करके,
अपना मन हल्का कर लेते हों।
आज मैं भी पेड़ की शाख से
टूटकर अलग हों गया हूँ
अब मैं भी तुम जैसे ही
बेकार सा बुजुर्ग हों गया हूँ
आओ मिलकर आपस में
अपना दुःख दर्द बाँट लेते हैं
तुम तो घर चले जाओगे,
हम तो जमीन में बिखरते हैं।
बुजुर्ग ने कहा की अब मैं
असहाय बेसहारा हों गया हूँ
जिनके लिए जीवन खपाया
उनके लिए बोझ हों गया हूँ
जिनको कभी मैंने बोलना,
चलना, सब कुछ सिखाया
आज वहीँ सब मुझे अक्सर
चुप रहने की सलाह देते हैं।
पत्ता फड़फड़ाया, बुजुर्ग से बोला
ऐसा ही हाल हमारा हैं
जब तक हम हरे और मजबूत थे
इस पेड़ की शान थे
मैं भी हवा में खूब फड़फड़ाता,
जरूरत से ज्यादा हिलता
नये कोपलों को बारिश, धूप,
शीत, तूफ़ान से बचाता।
अब जब मैं पीला हों गया हूँ
शाख ने भी मुझे अलग कर दिया
मैं अब कँहा किस हाल में रहूंगा,
किसी का क्या काम आऊंगा
यह मुझे नहीं मालूम नहीं हैं,
लेकिन ये पत्ते जों ऊपर लहरा रहे है
आने वाले पतझड़ में इनका भी
मुझ जैसे ही हाल हों जायेगा।
बुजुर्ग ने उस पत्ते को सीने पर लगाया,
उसे कुछ पल के लिए अपना बनाया
उस पत्ते से बोला तुम मेरी बात सुनते थे
मेरा दुःख दर्द समझते, महसूस करते थे
काश की मैं भी तुम जैसा एक पात होता
नीचे गिरकर किसी का दुःख दर्द तो बाँटता।