लौटती आवाज़
लौटती आवाज़
बरसात के बाद सफऱ करने निकला
रास्ते पर चलते हुए पहाड़ो से मिला
वहीँ पहाड़ी जो हरियाली लखदख़ थे
पत्थर मिट्टो को रोककर दृढ़ता से खडे थे।
मैंने सड़को पर गिरा हुआ मलवा पाया
कहीं बड़े पत्थरों कों बीच राह में गिरा पाया
यह सब दृश्य देखकर मैं बहुत परेशान था
प्रकृति के इस रूप से मैं बहुत हैरान था।
मैंने पहाड़ो कों बड़ी जोर की आवाज़ लगायी
वह आवाज़ पहाड़ो से टकराकर वापिस आई
वापिस आई आवाज़ मुझसे ही सवाल करने लगी
तुम क्या सुनना और जानना चाहते हो कहने लगी।
हमने कहा इतनी प्राकृतिक आपदा क्यों आ रही हैँ
बादल फटने की घटनाये ज्यादा क्यों हो रही हैँ,
नदियों में बाढ़, सड़को पर मलवा, रास्तो पर पत्थर
यह देवभूमि क्यों इस तरह बर्बाद होती जा रही हैँ.
पहाड़ से लौटी आवाज़ ने जो कहा जो मैंने सुना
हम पहाड़ सदियों से खडे और कभी डिगे नहीं हैँ
टूटना फूटना हमारी सतत चलने वाली प्रक्रिया है
कुछ हिस्सा टूटता हैँ तो नया हिस्सा फिर बनता हैँ।
ज़ब हम टूटते हैँ तभी मिट्टी, पत्थर, कंकरीट बनते हैँ
हम दो पहाड़ो के बीच नदी और घाटीया बनती हैँ
इन नदी और घाटियों से ही तो हम मैदान बनाते हैँ
हम पहाड़ ही तो इस धरती कों सुरक्षित रखते हैँ।
हमने कभी किसी का रास्ता नहीं नहीं रोका हैँ
बस तुम्हारी अंधी चाह ने हमको और तोड़ा हैँ
बाँध तुमने बनाये पानी का रास्ता किसने रोका
सड़क तुमने चौड़ी की, पहाड़ो कों किसने उजाड़ा।
नदी के किनारे पर आलीशान निवास किसने बनाया
पहाड़ो का सीना चीरकर, किसने हमको दहलाया
शहरों से घूमने के लिए आते हो सब हमारे दर पर
कूड़ा, प्लास्टिक, हर प्रकार की गंदगी कौन लाया।
सब कुछ विकास के नाम पर तुमने किया हैँ
फिर हमसे पूछ रहे हो आपदा क्यों आयी है
कभी तुमने हमारी परवाह की हैँ, हम क्या चाहते हैँ
तुमने कभी सोचा की मानव को हम जीवन देते है.
ऐसे ही अंधी दौड़ चलती रहेगी तो धरती भी फटेगी
पहाड़ भी टूटेंगे, बिखरेगे, नदीयाँ भी उफ़नायेगी
अभी भी वक़्त हैँ सम्भल लो, और प्रकृति को समझ लो
तभी यह मानव सभ्यता धरती पर बची रह पायेगी।
मनखी की कलम से।
