Kanchan Jain

Abstract

4.2  

Kanchan Jain

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कोई लौटा दे मुझे मेरी सखियां

कोई लौटा दे मुझे मेरी सखियां

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क्या हुआ मेरी सखियों ,क्यों ये मुरझा सी गई हैं।

किसी के माथे पे चिंता की लकीरें,

कोई गम चुपाकर मुस्कुरा रही हैं।


कोई चूप सी बैठी हैं,

कोई ख्यालो मे खोई हैं।

किसी के चेहरे पर उदासी, कोई उलझी हुई पहेली।


जिम्मेदारियो का बोझ ढोते ढोते, जीना भूल ही गई हैं।

कोई लौटा दो हमें ,वो हमारे स्कूल की घडिय़ां

वो बचपना, वो लडना झगडना, वो कट्टी बट्टी, वो घंटों बतियाना,


ना चिंता ना फिक्र अपनी मस्ती मे मस्त जिये जाना।

कोई लौटा दो मुझे वो मेरे बचपन की सखियाँ।


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