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Dinesh Dubey

Abstract

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Dinesh Dubey

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भ्रम

भ्रम

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भ्रम भी घबरा गया है ,

अपने ही भ्रम जाल से ,

अब तो निकल जा रहे ,

भ्रमर भी उसके पास से,।


भ्रम से बढ़कर हो गया,

इंसान की कुटिल चाल ,

भ्रम को ही भरमा रहे चल,

भौरों की भिनभिनाती चाल ,।


मासूम बना बैठा जो भ्रम,

देख के अपना बुरा हाल,

मानव के मस्तिष्क पर अब ,

रहा नहीं उनका अधिकार ,।



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