कुछ लिखना है
कुछ लिखना है
आज कुछ लिखना है,
पर सोच में हूँ कि क्या लिखूँ।
प्रेम से लिपटी बातें
या फिर इस बेवजह सी ज़िन्दगी को
या लहरों की रफ्तार को।
सब उलझें हैं अपने ही धुन में,
उन्हें लिख पाना नामुमकिन सा है।
इसलिये खामोश हूँ और बेचैन भी,
क्योंकि अब शब्द भी
साथ छोड़ रहें हैं कुछ अपनों की तरह।
और मैं खुद में सिमटी ..
इस ज़िन्दगी को जीने की
नाक़ाम कोशिश में हूँ
