स्त्री के मन की बातें
स्त्री के मन की बातें
स्त्री के मन की बातें,
कोई भी न समझ पाया।
वक्त आने पर हर रूप में
बदली उसकी काया।।
कभी वात्सल्य उमड़ा,
तो कभी बचपना दिखाया।
कभी दोस्त बनी,
तो कभी पत्नी का साया।।
कभी त्यागकर ख़ुद को..
पवित्रता का प्रमाण दर्शाया।
तो कभी बनके चंडी
दुश्मनों को मिटाया।
स्त्री के मन की बातें
बस वो ही समझ पाया,
जो उसके कोमल मन में
अपना घर बनाया।।