शाम
शाम
वो शामें भी क्या मस्त रही होंगी
जब इन लबों ने अनकही बातें कही होंगी
कितनी मुश्किलों से वो राज़ छुपे होंगे
जिनके जिक्र भर से
ये आँसू आँखों को छुए होंगे
पास होने का हुआ होगा वो अहसास
जिसकी यादें आज भी होंगी खास
जाने इस दिल ने कितनी सही होगी
वो शामें भी क्या मस्त रही होंगी
वो ढलते सूरज को देखना
और हल्की सी धूप को सेंकना
वो ज़िन्दगी का एक दौर,
हर रोज़ चलता होगा
वो शायर इश्क़ की किताब
हर रोज़ पढ़ता होगा
चुनिंदा शामों के कुछ पन्ने
एक किताब तो बनी होगी
वो शामें भी क्या मस्त रही होंगी
कलम का हाथ थामकर
यूँ गुज़रे वक्त को महसूस करना
हर किसी के बस की बात नहीं
वो अधूरी दास्ताँ को महफूज रखना
बिन पूछे, अपने दिल के सभी राज़
सब खोल कर रख दिए,
उस किताब के पास
यकीनन
ये पन्ना उसका दोस्त और स्याही , सखी होगी
वो शामें भी क्या मस्त रहीं होंगी
न जाने उनके साथ वो एहसास हुआ
वो नापसंद बारिश का मौसम
क्यों इतना खास हुआ...
वो बारिश के बाद की खुशबू
किसी की याद दिलाती होगी
वो बेवजह रूठने मनाने की आदत
उसके होंठों पे मुस्कान, शायद... लाती होगी
वो बारिश की बूंदें..
उसके लबों को छू रही होंगी
वो शामें भी क्या मस्त रहीं होंगी