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Palak Inde

Abstract Drama Romance

5.0  

Palak Inde

Abstract Drama Romance

शाम

शाम

1 min
533


वो शामें भी क्या मस्त रही होंगी

जब इन लबों ने अनकही बातें कही होंगी

कितनी मुश्किलों से वो राज़ छुपे होंगे

जिनके जिक्र भर से

ये आँसू आँखों को छुए होंगे

पास होने का हुआ होगा वो अहसास 

जिसकी यादें आज भी होंगी खास

जाने इस दिल ने कितनी सही होगी

वो शामें भी क्या मस्त रही होंगी


वो ढलते सूरज को देखना

और हल्की सी धूप को सेंकना

वो ज़िन्दगी का एक दौर,

हर रोज़ चलता होगा

वो शायर इश्क़ की किताब

हर रोज़ पढ़ता होगा

चुनिंदा शामों के कुछ पन्ने

एक किताब तो बनी होगी

वो शामें भी क्या मस्त रही होंगी


कलम का हाथ थामकर

यूँ गुज़रे वक्त को महसूस करना

हर किसी के बस की बात नहीं

वो अधूरी दास्ताँ को महफूज रखना

बिन पूछे, अपने दिल के सभी राज़

सब खोल कर रख दिए,

उस किताब के पास

यकीनन 

ये पन्ना उसका दोस्त और स्याही , सखी होगी

वो शामें भी क्या मस्त रहीं होंगी


न जाने उनके साथ वो एहसास हुआ

वो नापसंद बारिश का मौसम

क्यों इतना खास हुआ...

वो बारिश के बाद की खुशबू

किसी की याद दिलाती होगी

वो बेवजह रूठने मनाने की आदत

उसके होंठों पे मुस्कान, शायद... लाती होगी

वो बारिश की बूंदें..

उसके लबों को छू रही होंगी

वो शामें भी क्या मस्त रहीं होंगी



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