रात के फूल
रात के फूल
काली स्याह रात में जब
खिलते हैं रात के फूल।
अनगिनत उमड़े दिल में
फिर जज़्बातों के हुजूम।
नई नवेली दुल्हन सी बैठी
अपने आँचल को सिमटाये।
हरसिंगार, मोगरे की सुगंध
कुछ और ही कहानी सुनाये।
बाट निहारूँ, राह पुकारूँ
जुगनू न जाए कहीं भूल।
काली स्याह रात में जब
खिलते हैं रात के फूल।
भोर की लालिमा भी तो
बिखरी चांदनी झटक।
प्रतीक्षा रत थे यूँ नैना
अश्रुअन की धारा पटक।
न समझा निर्दयी, निर्मम
मेरे भोले से मन को।
छोड़ गया मुझ बिरहन को
दिल में चुभा के शूल।
काली स्याह रात में जब
खिलते हैं रात के फूल।