दर्द
दर्द
शहर के नये बने हाईवे पर
तेज गति से जाते हुए,
सड़क के साथ दिखती है
डिवाइडर की हरियाली।
निर्बाध चिकनी सड़क पर
कई पड़ावों को पार करते,
गति को अधिकतम रखते
अचानक दूर सड़क के बीच
दिखता है कुछ पड़ा हुआ।
अपनी तेज दृष्टि और सोच से
समझ जाता हूँ मैं
है यह कोई जीव कुचला हुआ।
तेजी से उसकी तरफ बढ़ते
मुझसे आगे निकलने को आतुर
दूसरी गाड़ियों को
शीशे में देखते,
उनसे पिछड़ जाने के डर से
तुरंत देता हूँ संकेतक
दायें या बायें होने का।
दृष्टि फेर कर उससे बगल से निकलता हूँ
इस संतोष के साथ
कि नहीं देखा उस दबे कुचले लोथड़े को।
नहीं रुका न धीमी की अपनी गति
नहीं बढ़ने दिया किसी को अपने से आगे।
मैं आगे बढ़ जाता हूँ
और दिल के किसी कोने में
मैं यह भी जानता हूँ
कि देखा था मैंने उसे
और उसके कुचले जाने का कुछ दर्द
साथ ले आया हूँ।