शीशे में शीशे में
जीत होगी या फिर मेरी हार होगी बिना सोचे ही सफ़र पर चल पड़ा हूं जीत होगी या फिर मेरी हार होगी बिना सोचे ही सफ़र पर चल पड़ा हूं
लेखक : बोरिस पास्तरनाक अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : बोरिस पास्तरनाक अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
हम कहीं के न रहे, हम खानाबदोश हुए! हम कहीं के न रहे, हम खानाबदोश हुए!
आश्रय स्थल पर, भेज इनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करे। आश्रय स्थल पर, भेज इनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करे।
शीशे के कुछ रंगीन टुकड़े, बारी-बारी से , अपने आँखों पे लगा, वो देख रहा था। शीशे के कुछ रंगीन टुकड़े, बारी-बारी से , अपने आँखों पे लगा, वो देख रहा थ...