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लालबत्ती का दर्द

लालबत्ती का दर्द

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लालबत्ती पर होता है जिंदगी के

अनगिनत पहलुओं का अहसास,

लालबत्ती के आसपास दौड़ता है

भटकता है नादान बचपन,


शहर की रफ्तार का सिलसिला

जब थमता है यहाँ,

कोई मांगता है आकर भीख तो

कोई गुब्बारे बेचते हैं यहाँ।


गरीबी, बेबसी का

अहसास होता है यही पर।

गाड़ियों का थमना और रूकते ही

गाड़ी के ग्लास को

पोछता देश का भविष्य,


गाड़ियों के ग्लास पर सिर को

टिका अंदर की ओर झाँकना,

चेहरे पर दीनता की झलक

और चेहरे पर मलिनता का दिखना,

मन को असहज बना

कर विचलित करते हैं।


कोई इशारे कर अपनी

भूख मिटाने के लिए,

शीशे पर लगातार

ठक ठक करते रहते हैं।


क्या हम इन्हें लालबत्ती के

दायरे से दूर नहीं कर सकतें,

क्यों न ऐसा कदम

उठाने की कोशिश करें,


इन भीख मांगने वालों को

आश्रय स्थल पर,

भेज इनकी मूलभूत

आवश्यकताओं की पूर्ति करे।


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