स्मृतियाँ
स्मृतियाँ
एक पहाड़ तोड़ा तन के भीतर
सुषुप्तावस्था में सोया था स्मृतियों का,
संकिर्ण सी सारी ग्रंथियाँ विसर्जित हो गई
एक ठंडे दरिया में, स्मृतियों में झाँका जो आज
अतीत की गलियों में खो गई
नवचेतना सी उर्जा खिल गई..!
बहने लगी रक्त के कण-कण में
स्मृतियों को छूते ही बहुत सी चीजें
तरोताजा सी दिल के भीतर से निकली..!
जी लिया बचपन माँ की गोद को महसूस किया
एक लहर मीठी सी दौड पड़ी तन गुलज़ार हो गया..!
मैं युवा हो उठी जी हाँ प्रेम प्रसंग को जी रही हूँ
जवाँ धड़कनें हो उठी..!
गुज़र रही हूँ उन सारे लम्हों से
एकबार फिर जागरुक होती,
सारे स्त्रोत बह रहे हैं अनुराग के मन की धरा पर
नृत्य करते..!
कितनी स्मृतियाँ दबी पड़ी थी
संजोकर हथेलियों पर रखते ही,
मैं हैरान हूँ एक पहाड़ को कुरेदकर
मैंने दिल पर पड़े बोझ को हल्का किया..!
जीवंत हो उठी हूँ आज
मुग्ध सी खाली-खाली हल्की-हल्की
स्वतंत्रता की ताज़गी से सराबोर..!
सच में स्मृतियाँ एक इतिहास गड़े भीतर पड़ी होती है,
छूने पर ताजा मिलती है जैसे
अभी घटी हो सभी घटना..!
गुज़रे लम्हों को फिर से जीने का मजा है स्मृतियाँ
अगर सहज कर रखी है दिल के भीतर तो,
उम्र के एक पड़ाव पर जीवन को हरा करती है स्मृतियाँ।।
