सफलता का मंत्र
सफलता का मंत्र
ह्रदय विदीर्ण हुआ है मेरा,
अंगों का पक्षाघात हुआ !
जिस आशा से बाग लगाया,
पतझड़ से सब टूट गया !
जिम्मेदारी से दूर रहे हो,
घर को घर नहीं समझते हो !
क्या जीवन का मूल्य यही है,
झूठे आडम्बर करते हो !
धारा गति को छोड़ हमेशा,
उल्टी राह जो जाता है !
उसका जीवन सब कुछ पाकर,
औन्धे मुँह गिर जाता है !
झूठों की नीवों पर हम,
कुछ क्षण तो इतराते हैं !
पर लोगों के सम्मुख होकर,
अंतरात्मा से घबराते हैं !
जिस सामाज में रहकर प्राणी,
लोगों को न पहचान सके !
उसका जीवन क्या है जीवन,
जो दर्द किसी न बाँट सके !
है स्वतंत्र जीवन हम सबका,
राह हमी को चुनना है !
अपने कर्मो को निर्मल कर,
नये समाज को गढ़ना है !
