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Lakshman Jha

Drama

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Lakshman Jha

Drama

सफलता का मंत्र

सफलता का मंत्र

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ह्रदय विदीर्ण हुआ है मेरा,

अंगों का पक्षाघात हुआ !

जिस आशा से बाग लगाया,

पतझड़ से सब टूट गया !


जिम्मेदारी से दूर रहे हो,

घर को घर नहीं समझते हो !

क्या जीवन का मूल्य यही है,

झूठे आडम्बर करते हो !


धारा गति को छोड़ हमेशा,

उल्टी राह जो जाता है !

उसका जीवन सब कुछ पाकर,

औन्धे मुँह गिर जाता है !


झूठों की नीवों पर हम,

कुछ क्षण तो इतराते हैं !

पर लोगों के सम्मुख होकर,

अंतरात्मा से घबराते हैं !


जिस सामाज में रहकर प्राणी,

लोगों को न पहचान सके !

उसका जीवन क्या है जीवन,

जो दर्द किसी न बाँट सके !


है स्वतंत्र जीवन हम सबका,

राह हमी को चुनना है !

अपने कर्मो को निर्मल कर,

नये समाज को गढ़ना है !


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