अब्र
अब्र
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गम ए अब्र का वास्ता हमसे देखा न गया,
अब्र के राब्ता से वाकिफ न थे हमसे सहा न गया।
अब्र की नादानियां और बेवजह हम पर बरसना,
चश्म ए तर हो गये मेरे तो हमसे समझा न गया।
भटकता रहा मन भी अब्र की तरह मेरा,
मंजिलों का कोई पता नहीं हमसे पूछा न गया।
फिजा रंग बदलती रही अफसानों की तरह,
खामोशियां बयां करें कैसे हमसे कहा न गया।
अब्र की लुकाछिपी में राह भटक गए,
भटकते मुसाफ़िर से हो गये अब हमसे रहा न गया।