मानवता की सच्ची कहानी होगी
मानवता की सच्ची कहानी होगी
छटपटा रही इंसानियत
हैवानियत की क़ैद में
सिसक रहा भाईचारा
बेईमानी के ऐब में।
खून की कीमत नहीं
वो बस दिखने में लाल है ?
हरकोई एक दूजे को झपटने की
साज़िशों में ही बेहाल है।
तोह्फा विश्वासघात का
बदनीयती की बाज़ार से लेते
प्रेम विहीन माहौल में देखो
हर कोई लाचार से दीखते।
हड़पना, हड़पना और हड़पना
मानों, हड़पना ही जीत हो
मानसिकता में परिवर्तन ऐसा ?
मिलना-जुलना हार जीत हो
मानवता छूट रही है-
औपचारिकता लूट रही है
रिश्तों के बंधन की एहसास को
न जाने क्यूँ- अधर चुप है
और दिल दे रहा आभास को।
समझ, जिसे लोग भुला रहे
अपनापन, जिसे लोग भूल रहे
निजता की सीमितता को त्याग कर
अपनेपन की समझ बनानी होगी
तभी, मानवता की सच्ची कहानी होगी।।
