वह तवायफ़ थी 13
वह तवायफ़ थी 13


वह तवायफ़ थी, उसके पास
बदन था, जिंदा रहने के लिए।
वह माँ भी थी, बच्चों की
पेट वह भरती, समाज की गंदगी
अपने में समेटकर,बच्चों के लिए।
पति को तो समाज के दबंगों
ने पहले ही मार दिया था।
उसे ईमानदारी का रोग जो था
बेइमानों से वह हार गया था।
क्या करती वह, कहाँ जाती
जहाँ जाती, बच्चों को खोती।
जीने की ढ़ाल, बनाया था उसने
बदन को वह तवायफ़ थी।
क्या देश में कानून का,
राज है या दबंगो का।
सभी से पूछती, तवायफ़ लोग पहले
उसे निहारते, फिर गालियाँ देते
वह बुरा ना मानती लोगों का।
कब तक नारियाँ, घुटती दबती
सिसकती रहेंगी, समाज में।
हम उनका सम्मान, करना सिखेंगे कब
तवायफ़ ना बने कोई,
ख्याल कब करेंगे समाज में।।