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Devaram Bishnoi

Drama

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Devaram Bishnoi

Drama

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।

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ना शौर कर ना जोर कर।

चुपचाप मन में सोच कर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

प्रकृति से हर पल तूं सदा प्रेम कर।

प्रेम बाल्यावस्था में अंकुरित कर। 

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

प्रकृति हरि प्रेम मन में सृजित कर।

स्थाई निरन्तर दिल में चलायमान कर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

प्रभू प्रिय हैं प्रेम हरि प्रभू प्रकृति से प्रेम कर।

प्रकृति के कण-कण से तूं सदा प्रेम कर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

सिर साठे रूख़ रहे तो भी सस्तो जाण कर।

शहीदअमृता कि उद्घोषणा को तूं स्वीकार कर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

जीव दया पालनी रूख़ लिलो नहीं घावे धारकर।

गुरु जांम्भोजी के सत्य वचनों को तूं स्वीकार कर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

पशुपक्षी वन्यजीव से हे इंसान तूं सदा प्रेम कर।

उन्नतिस नियम शब्दवाणी उपदेश तूं स्वीकार कर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी भणकर।

बोल सदा सुख मीठी वाणी बोलकर।

हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।

कवि देवा कहें हे इंसान प्रकृति से तूं सदा प्रेम कर।।



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