सावण भाद्रवा बरसे मेह
सावण भाद्रवा बरसे मेह
गरजै बादळ फूटरा, मुळकण लाग्या खेत।
करसो बैठ्यो झूंपड़ी, हिवड़ें उपज्यो हेत।।
आभे चमके बिजलियां,नित हातरों बरसे मेह।
रामभरोसे खेती,ओ आसो जमानो होसि।
सावण भाद्रवा घणो बरसे,मेह आ सुकाल निशाणी।
सुकाल मवेशी चारों घणों,मानखा रे धिणो जिमण घान।।
जय श्री गुरु देव नमः....
कवि देवा कहें मारवाड़ माय इंद्र मेहर सूं
सावण भाद्रवा घणो भारी बरसेला मेह।।
