-सच्ची मित्रता-
-सच्ची मित्रता-
यूं तो कुछ मज़बूरी कशमकश है।
फ़िर भी हम तो तुम्हारे ही संग है।।
एक दूसरे कि भी मजबूरी ख्वाहिशें।
कुछ यूं थोड़ा समझा भी करो यारो।।
यह जिंदगानी तो फिर भी छोटी-सी है
कुछ इन्सानियत रखो दिल में संजोए।।
एक दूसरे का साथ भी निभाया करो।
आज़ तो हैं हम कल किसने देखा हैं।।
ऐ मित्र जिंदगी का क्या भरोसा
अगली सुबह छोड़ सांस कि सोच।।
जो भी लिया दिया यही से लिया है।
जो यही समझे वहीं सच में धर्मार्थी।।
जो कोई दान देकर सीना फुलाएं
दानवीर मुर्खतापूर्ण घमंड दिखावे।।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।
हकीकत में यही से लिया यही दिया।।
कल कि फिक्र ना करआज़ में जिये।
कल किसने देखा पल कि ना ख़बर।।
जिंदगी स्वयं की नहीं उधार की है।
यूं रजिस्ट्री के चक्रव्यूह में ना फंस।।
सब कुछ तू मालिक के भरोसे कर
फकीरी से तू भवसागर पार उतर।।
कवि देवा कहें_
मित्रता की यूं परख परीक्षा ना लें।
मित्र सुख-दुख में साथ खड़े होंगे हम।।
