"ख़यालों का सैलाब"
"ख़यालों का सैलाब"
रुका हुआ है वक़्त, मगर ख़याल बहते जाते हैं,
ख़ामोश लम्हों की धड़कन में, तूफ़ान से उठते जाते हैं।
आँखों से क़तरे गिरते हैं, जैसे अश्क़ पिघल रहे हों,
भीगी हुई यादों के साए, हर लफ्ज़ में जल रहे हों।
सांसें ठहरीं, मगर दिल बेक़रार है,
जज़्बातों के सैलाब पर हम भी सवार हैं।
दिमाग़ में चलती हवाओं का शोर,
जैसे बिखरे पड़े हों अनकहे दौर।
ए दिल! थोड़ा ठहर, कुछ पल संवार,
सुबह की रोशनी से फिर कर इज़हार।
