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Sunil Kumar Purohit

Drama Tragedy

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Sunil Kumar Purohit

Drama Tragedy

मन की प्यासी

मन की प्यासी

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वो तन का भूखा,

मैं मन की प्यासी,

लुभाने को कहता,

श्रृंगार करो, सुन्दर लगती हो|


करती श्रृंगार रोते-रोते,

आया वो, निहारा;

निहारा नहीं जितने पल,

उससे ज्यादा नोंचा उसने,

वो निकल पड़ा काम के बहाने|


बिखरा देख श्रृंगार,

बोला मैंने, देखा

ऐ माथे की बिंदी,

नाक की नथनी,

हाथों के कंगन,

पाँवों की पायल,

नंगे बदन के आगे,

तेरी औकात क्या है!


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