STORYMIRROR

Sunil Kumar Purohit

Abstract

3  

Sunil Kumar Purohit

Abstract

रिक्शाचालक

रिक्शाचालक

1 min
214

रिक्शा चालक हूँ साहिब

मेरे बहते पसीने पे ध्यान ना दो।


कहीं आपकी

सहानुभूति से टूट गया तो।


मेरी गृहस्थी बिखर जाएगी

जब पसीने से सनी कमाई ले जाता हूँ।


घर में रहने वाले मेरे अपनों की

आँखों में चमक और


होठों पे मुस्कान देख

सारी थकान भूल जाता हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract