मोहबत आसमानों में
मोहबत आसमानों में
ह्रदय की धड़कने तुम संग रहे मेरी उफ़ानों में
मेरी हालत उन पेड़ों सी घिरे हैं जो तुफानों में।
मेरा मिलना तुम्हे साथी, तेरा मिलना मुझे साथी
जरा सी बात है लेक़िन सभी की है ज़ुबानों में।
मुझे बदनाम करने को जमाना इस कदर बैठा
किया जो भी नहीं मैंने वो है सबके ध्यानों में।
हवा देने तो सब आये मेरे घर की चिंगारी में
मगर लाक्ष्य गृह की ईंट है सबके मकानों में।
मुसलसल फुरकते पाकर व्यथित होती हो क्यों साथी
अदावत धूल में मिलती मोहबत आसमानों में।
सुबह और शाम माथ टेकते हैं जिसके दर पर जो
उसी की सीख चाहत को रखे हैं वो निशानों में।
कोई गुनाह नहीं हमने मोहबत ही तो की है जाँ
बुलाओ तुम मुझे खुलकर बुलाती क्यों बहानों में।
कर्जमाफी या पैसों से यहाँ कुछ हो नहीं सकता
कि जब तक भाव फसलों का यहाँ है ढलानों में।
गिरे नजरों से वो मेरी, लगे मुझको वो सब बौने
मुझे नीचा दिखाने को चढ़े वो जब मचानों में।
सदा अहसान मानूंगा ख़ुदा की इस नवाजिश का
नफ़स बन जाये गर चाहत ऋषभ तीनों जहानों में।।