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Rishabh Tomar

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Rishabh Tomar

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जय जय भोले जय जय शंकर

जय जय भोले जय जय शंकर

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शिव आदिनाथ, शिव नील कंठ,

रखे शीश गंग , सजे चन्द्र माथ।

प्रभु दीन हीन जड़ सबके नाथ,

पशु प्रेमी शिवजी पशुपतिनाथ।


कर ब्रह्म नाद करे है डम डमरू,

सत रज तम युक्त त्रिशूल पास।

शिव का पिनाक, विजय त्रिशूल

है प्रलयकारी चम चम चंद्रहास।


शिव भूतनाथ, शिव नीलकण्ठ,

शिव आदिश है शिव ही रहस्य।

शिव से ही सृष्टि का है वर्तमान

शिव विगतकाल शिव से भविष्य।


जो है निषेद वो है शिव को प्रिय,

खुश होते बेल भांग धतूरे से।

पिये कालकूट दे जग को अमृत

बाघम्बर धारी भोले भूरे से।


शिव जी से न मुझे कुछ चाहिये,

शिव को पा उनमें खोना है।

चरणों में रज कण सा होकर,

स्वामी के मुझको सोना है ।


 वासुकी नाग है प्रभु की माला,

है पार्वती, उर्मि या उमा शक्ति ।

देवता असुर प्रभु सबको प्रिय,

करे रावण राम भी शिव भक्ति।


प्रभु तारण है तारी तरणि गङ्गा,

गंगाधर लीलाधर जय भोले।

सृष्टि का कण कण है शिव से,

सब पार्वती पतिय हर हर बोले ।


शिव लिंग प्रभु की आत्म ज्योति,

कंकर कंकर है शिव का चिन्ह ।

डमरू त्रिपुंड रुद्राक्ष त्रिशूल जटा

शिव एक, चिन्ह है भिन्न भिन्न ।


नर, नाग पशु सुर असुर मुनि,

शिव रमते है प्रत्येक धर्म ।

ये तन मन सब शिव पे अर्पित,

शिव मनन धरण कल्याण कर्म।


शिव है प्रारंभ शिव अंत अनंत,

हर क्षण हर कण कंकर कंकर।

भजते है रमापति भी प्रभु को,

जय जय भोले जय जय शंकर।


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