मेरे राम अब भी वन में है
मेरे राम अब भी वन में है
बढ़ गया है पाप जग में अहम हर इक जन में है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
भेष बदले फिर रहे है कई दुष्ट साधू भेष रखकर
कुकृत्य ऐसे क्या कहूँ लंकापति से लाख बढकर
जानकी वेदी माया रंभा क्या नन्ही बच्ची शिकार
लूट रही है अस्मिताऐं खूब अट्टहास भर भरकर
वासना का शिखर ले शठ पापी समाया तन में है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
राम जी का नाम ले करते रावण को नित विजय
छल दंभ ईर्ष्या दोष रत दुष्कर्मो में रहते है लय
नफरत की करते बात है बेख़ौफ़ पहने नकाब है
बाहर धवल अंदर स्याह प्रभु का नही है लेश भय
बस वोट खातिर राम है बाकी दशानन तन में है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
भय में है हर जानकी, साधु का है पीड़ा में मन
अपराध का पर्याय बन मानवता चिंता में गहन
हर ओर हाहाकार है ये हर ओर बस चीत्कार है
हे राम लाखों रूप ले करदो सब पापों का दमन
तन में मन मे अवनि में हर ओर पापी गगन में है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
राम जय श्री राम ये मन से नही कोई भी गाता
मिथ्या दसहरा लग रहा बेकार है ये हूजूम जाता
रख ह्रदय में असुर ले आग उसकी ओर बढ़ते
देखके बेजान पुतला भाई उस पर तरस आता
जल रहा पुतला महज है रावण हमारे मन मे है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
नित डर रही है बेटियाँ स्कूल कॉलेज जाने में
पंख अपने खोलने नित ख्याबों को सजाने में
तेजाब से जलती है लूटती है वो बीच बाजार में
कैसे जलाऊं पुतला ये रावण बैठा है जामने में
मोड़ गलियों पे देखो वो जिंदा बोली नयन में है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
जो मान स्त्री का करें संग मर्यादा अपनी संभाले
मात पित गुरू को ह्रदय में ईश के सम जो है पाले
बेर सबरी के भी खाले प्यारा हो हर जीव उसको
राम का कर अनुकरण मन से रावण को निकाले
श्री राम उसके मन में है मेरे राम उसके मन मे है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
बढ़ गया है पाप जग में अहम हर इक जन में है
राम अब भी वन में है श्री राम अब भी वन में है
