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AMOL VIJAY VISHAKHA KAMBLE

Drama

4  

AMOL VIJAY VISHAKHA KAMBLE

Drama

वैश्या

वैश्या

1 min
261


सम्मान से जब लोगों के सामने झुकाया अपना सिर 

शर्म की गरिमा त्याग कर फिर भी उन्होने बेचा मेरा शरीर

कुदरत की एक पहचान थी मिला था स्त्री का अदभूत रूप 

कभी सोचा न था उसी पहचान से भागना पडेगा डर स्वरूप

जखम से भरा था शरीर का हर एक हिस्सा 


कैसे सुनाती अपना ये दुखभरा किस्सा

खेलने कुदने के दिनो में मेरे सपनो के हुए टुकडे 

उम्र भी नहीं थी तब भी फटते रहे मेरे कपडे

समुंदर के किनारो में लहरों की मंजिल हर बार दिखाई पडती है 

हर बार नये साहिल तक पहुचने से पहले अपना रास्ता बदल लेती है

घबराया था मन उस में काफी यादें छुपी थी 


लेकिन दुनिया के बिस्तर पर तो हर रात मेरे जखमों की ही सज़ी थी

दुनिया ने तो वैश्या जैसे शब्द से हमें पुकारा 

हर बार नारी के ऐसे सम्मान ने हमें सपने में भी झंझारा।


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