वो हमदम मेरा हमसे इश्क़ करता है
वो हमदम मेरा हमसे इश्क़ करता है


वो उन कश्मीर की वादिओं सा है
जहां शम्स भी दोपहर में धुँधला होता है
अर्श पर जिसके सिर्फ बादलों की सियासत होती है
जिसकी शाख पर मवाल खिलते हैं
जहां पूरी वादी ज़ाफ़रानी होती है
बर्फ की चादर ने यूँ ढाप रखा है उसे
के जो छू लो उसे तो सुकून सा लगे
उसकी कुर्बत में न होना जुर्म सा लगे
जहां रहने की तमन्ना हर मुसाफिर करता है
वो हमदम मेरा हमसे इश्क़ करता है।