बारिश
बारिश


अह❗ बारिश
किस से पूछूं ?
क्या तुमसे पूछूं क्यों ?
तुम कहीं खुशी तो कहीं
पीड़ा की मंजूषा भरा गईं
किसी को प्रसाद तो किसी को
अवसाद से तरा गई।
तुम कहीं किसी झरोखे में
बरस मन को उन्माद कर गई
कहीं किसी झुग्गी में बरस
लबालब सैलाब कर गई।
कहीं तो दो नर्म करतलों में चाय का
तप्त प्याला मन को तृप्त कर गया
कहीं तो दो डबडबाई नयनों में वेदना
और व्यथित मन तृष्णा से भर गया।
अह❗बारिश
किस से पूछूं ?
क्या तुमसे पूछूं क्यों ?