फ़लसफ़ा
फ़लसफ़ा
ज़िन्दगी ने रोने के हज़ारों वज़ह दिए
हंसने के मगर कुछेक ही बहाने
यह तो बेईमानी है !?
जिन्दगी ने कहा यह प्रश्न तुम्हारी नादानी है
यही है जीवन का फ़लसफ़ा
यही लाज़मी है सबको निभानी है।!
इसलिए तो ज़िन्दगी कहती है
ग़म रहे फिर भी हंसो मुस्कुराया करो
और कुछ हंसी उधार के ही सही ले आया करो।!
यूं कि पलड़ा ग़म का भारी है, मगर
पलड़ा तो बराबर दिखानी है
रस्मों रिवाज है ! सभी को निभानी है । !
सो मन ही मन हमने भी ठानी है
क्योंकि हम भी संस्कारी, समाजिक प्राणी है
हमने भी न रोना है न ग़म को गले से लगाना है।!
ले आए कुछ उधार हंसी के हमने भी
मगर आंसुओ पे अंकुश न लगा पाए
आंखों से सैलाब उमड़ आए !!
वाह वाह ❗कितने खुशहाल हो तुम
लोगों ने तरकश से तीर चलाए
हंसमुख का हमें खिताब दे आए ।!
यह खुशी नहीं ग़म के आंसू हैं
अधर हमारे कह न पाए
कैसी यह बेईमानी है ?
रीति जगत की निभानी है
क्योंकि हम भी संस्कारी, समाजिक प्राणी है।!