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vishwanath Aparna

Abstract

4.0  

vishwanath Aparna

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ऐसी भी वैसी भी

ऐसी भी वैसी भी

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66



जिंदगी तो आखिर जिंदगी होती है

तरह-तरह से संजोती है

ऐसी भी होती है

वैसी भी होती है❗


कभी सच्ची

कभी झूठी❗


कभी आदिल 

कभी संगदिल सी❗


कभी फिक्रमंद

कभी बेपरवाह सी❗

 

कभी डोर तो

कभी पतंग सी❗


कभी हार

कभी जीत❗


कभी चुप 

कभी मचलती❗


कभी आगोश में

कभी फिसलती❗


कभी फैलती

कभी सिकुड़ती❗

 

कभी हंसाती

कभी रूलाती❗


कभी रात 

कभी सहर सी❗


कभी उलझती

कभी सुलझाती❗


कभी बुझती

कभी सुलगती❗


कभी बूंद बूंद

कभी सागर सी❗


कभी भागती-दौड़ती

कभी थमी थमी सी❗


कभी रूठती

कभी मनाती❗


कभी सख्त

कभी नर्म सी❗


कितने लोग उतनी नजरिया , कितनी जगहें उतने किस्से ,  कितना प्यार उतनी नफ़रतें , कितने रंग कितने संग.......❗

जी लो जी भर कर आज को

कोई शिकवा कोई शिकायत न कर

कल का तू इंतजार न कर ,❗

ऐ ऐसी भी होती है

ऐ वैसी ही होती है....❗❗

__अपर्णा🍁




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