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vishwanath Aparna

Abstract

3  

vishwanath Aparna

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मैं ( अल्हड जवानी)

मैं ( अल्हड जवानी)

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वो मेरी कमियां तराशती रही

मैं उसमें कमियां तलाशती रही।।

वो मुझे टोकती रही

मैं उसे कोसती रही।।

वो मुझे रोकती रही

मैं आगे बढ़ती रही।।

वो मुझे प्यार करती रही

मैं नफरत के दरवाजे खोलती रही।।

वो मुझे बोलने की राह दिखाती रही

मैं उसे चुपचाप रहने की सलाह देती रही।।

वो मुझे प्रकाश देती रही

मैं उसे अंधकार में धकेलती रही।।

वो मुझे ज्ञान देती रही

मैं उसे अज्ञानी बुलाती रही।।

वो मेरे दिन कैसे खिलखिलाए सोचती रही

मैं उसकी शामें उदास करती रही।।

वो मेरे पास आने में नाकामयाब होती रही

मैं उससे दूर होने में कामयाब होती रही।।

वो मुझे लंबी उम्र का आशीर्वाद देती रही

मैं उसे मर जा की दुहाई देती रही।।

क्योंकि वह "वो" एक माँ थी तन ,मन , हृदय से कोमल,

सहनशील ,अंतर्ज्ञानी , प्रेम सरोवर निश्चल निष्कपट,

निर्मल कल-कल निनाद सी पवित्र गंगा

और मैं ? वह "मैं" एक अर्धज्ञानी ,अपरिपक्व, अज्ञानी

जुबां से कटु , स्वाभाव से उग्र , एक बच्चे की अल्हड जवानी थी??



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